हिमाचल में यमुना नदी के किनारे खनन के लिए दो किलोमीटर अंदर तक घुसा उत्तराखंड, हिमाचल सरकार को नहीं लगने दी भनक

यमुना नदी के किनारे दो किलोमीटर तक हिमाचल प्रदेश के अंदर तक खनन के लिए साइट दे दी गई, जिसके लिए कोई वैध पर्यावरण स्वीकृति भी नहीं ली गई।

हिमाचल प्रदेश सरकार को भनक लगे बगैर उत्तराखंड खनन के लिए दो किलोमीटर अंदर तक घुस आया। उत्तराखंड सरकार ने हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के मानपुर देवरा गांव में गढ़वाल मंडल विकास निगम को खनन की स्वीकृति दी थी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इस अवैध खनन पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी है।

न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने प्रशासन को अवैध खनन करने वालोंं से जुर्माना वसूलने के आदेश दिए हैं। एनजीटी ने पर्यावरण को 100 करोड़ वार्षिक नुकसान का अनुमान लगाया है। उत्तराखंड निवासी जुनेद अयुबी की याचिका का निपटारा करते हुए ट्रिब्यूनल ने यह आदेश पारित किए। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि गढ़वाल मंडल विकास निगम अवैध खनन कर रहा है।

 

दलील दी गई कि खनन के लिए गढ़वाल निगम को स्वीकृति दी गई थी, लेकिन निगम ने खनन अधिकार दो ठेकेदारों को स्थानांतरित कर दिए। इसके अतिरिक्त यमुना नदी के किनारों पर खनन किया जा रहा है, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विपरीत है। 27 सितंबर, 2022 को इस मामले की जांच के लिए ट्रिब्यूनल ने संयुक्त कमेटी का गठन किया था।

 

पर्यावरण मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय देहरादून, निदेशक भू विज्ञान विभाग और खनन, उत्तराखंड सरकार, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला मजिस्ट्रेट देहरादून को कमेटी का सदस्य बनाया गया था। कमेटी ने ट्रिब्यूनल को बताया कि गूगल अर्थ के माध्यम से खनन पट्टों में से एक का भाग उत्तराखंड के गांव ढकराणी में खसरा नंबर 971 में है, जबकि दूसरा भाग हिमाचल प्रदेश के मानपुर देवरा गांव में है।

 

इसका 80 फीसदी भाग हिमाचल प्रदेश और 20 फीसदी उत्तराखंड में है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि 3 जनवरी, 2017 को गढ़वाल मंडल विकास निगम को खनन की स्वीकृति दी गई थी, लेकिन निगम ने 24 अगस्त, 2020 को खनन अधिकार दूसरे ठेकेदार को दे दिए। निगम और ठेकेदार ने उत्तराखंड सरकार से हिमाचल प्रदेश की सीमा का मुद्दा भी उठाया था।

 

यमुना नदी के किनारे दो किलोमीटर तक हिमाचल प्रदेश के अंदर तक खनन के लिए साइट दे दी गई, जिसके लिए कोई वैध पर्यावरण स्वीकृति भी नहीं ली गई थी। संयुक्त कमेटी ने ट्रिब्यूनल को बताया कि इसके बावजूद भी संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत से खनन किया जा रहा है। ट्रिब्यूनल ने अपने निर्णय में कहा कि एक तो नदी किनारे खनन करना गैर कानूनी है, दूसरा खनन अधिकारों को स्थानांतरित करना अवैध है।

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